Monday, 9 April 2012

प्रकृति

तेरी खूबसूरती बयान करने के लिया,
मेरे सब्दकोश में अलफ़ाज़ नहीं,
तेरी हरियाली से झूम उट्ठी में,
प्रकृति तेरी आँचल में समाजाऊ कही...

तेरी हरी रंग से तोह,
कला सड़क भी है निखर,
स्वर्ग जैसा दिखे वो राह,
जब तेरे फूल और कलि वह बिखरा...

जी करता है,
तुझे अपना घर बनालू माँइ,
तुझमे गुल्शिता बनाये हुए पंछियों को,
अपना दोस्त बनालू मई...

सुन्दरता और गुण अपार तुझमे,
की शर्मा जाये स्वर्ग की अप्सरा,
इन् सबके बावजूद भी,
तुझमे न देखि मैंने घमंड एक जरा...

स्वच्छा हवा तू बिखेरती सदा,
निर्मल है तू, तू  पवित्र,
इश्वर का तू प्यारा करिश्मा है,
सब से अलग, सब से विचित्र....


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